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15 फीट ऊँचे ब्रिज पर औरत ने खटखटाई खिड़की | Haunted Train True Story in Hindi

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यह Hounted Train True Story एक ईमानदार पुलिस अफसर दिलीप शर्मा की है, जो तीन साल बाद अपने गांव लौट रहा था। लेकिन उसके सफर में जो रहस्यमय और डरावना अनुभव हुआ, उसने उसकी जिंदगी की सोच ही बदल दी। इस सच्ची घटना में जानिए कैसे एक कंबल ओढ़े औरत ने आधी रात को 15 फीट ऊंचे ब्रिज पर ट्रेन की खिड़की खटखटाई – क्या वह इंसान थी या कुछ और?

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दिलीप शर्मा उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव के रहने वाले थे लेकिन वो मुंबई में रहकर अपनी पुलिस की नौकरी कर रहे थे और गांव में उनके बूढ़े माता-पिता रहा करते थे एक उनका छोटा भाई था जो की गांव में ही रहकर अपने बूढ़े माता-पिता का ख्याल रखता था और वही गाँव मे ही रहकर खेत का काम भी संभालता था दिलीप पढ़ाई लिखाई करने में थोड़े आगे थे और इस वजह से इन्होंने अपनी पढ़ाई की थी और पुलिस की नौकरी मुंबई जैसे शहर में ले लीये थे पिछले 6 साल से दिलीप मुम्बई में नौकरी कर रहे थे लेकिन जब कभी भी इनको छुट्टी मिलती थी तो हमेशा अपने घर चले जाते थे इनके माता-पिता और इनका भाई कोई भी कभी भी मुंबई नहीं आया था यह मुंबई के कुर्ला में रहता था

दिलीप 3 साल से अपने घर नहीं गया था दिलीप घर जाना चाहता था पर नौकरी के चक्कर मे पड़कर जा ही नहीं पा रहा था एक समय ऐसा आया की जब दिलीप के माता-पिता ने दिलीप को फोन करके बोले की हमारी तबीयत खराब रहने लगी है अब तू कुछ दिन के लिए गांव आजा एक लड़की देखकर तेरी शादी करवा देते हैं |

तेरी शादी जल्दी-जल्दी निपटा देंगे मुझे पता है की तेरी नौकरी है हम सब समझ सकते हैं अपने ऑफिस में हमारी तबीयत के लिए एक एप्लीकेशन लगा के आजा, शादी जल्दी निपटा देंगे तो लौट जाना अपनी पत्नी के साथ दिलीप बोलता हैं अच्छा ऐसी बात है तो ठीक है। माता-पिता बूढ़े हो चुके हैं ऐसा कह रहे हैं तो मैं शादी कर ही लेता हूं दिलीप छुट्टी के लिए एप्लीकेशन लगाता हैं और उसको परमिशन मिल जाति है दिलीप को 12 दिन की परमिशन मिली थी वह काफी ज्यादा खुश हुवा क्योंकि वह 3 साल से घर जा नहीं पा रहा था अब दिलीप की टिकट बुक हो जाति है |

एक पुलिस अफसर की छुट्टी और ट्रेन का सफर Train True Story

दोस्तों वैसे तो आप जानते होंगे की पुलिस की नौकरी हर वक्त ऑन ड्यूटी कई बार कही भी जाना पड़ता है तो ऐसा ही कोई काम फस गया जिसके वजह से दिलीप के ट्रेन की टाइमिंग बिल्कुल नजदीक आ गई दिलीप की ट्रेन कल्याण से थी तो दिलीप का फसने वाली जैसा सिचुएशन आ गई थी क्योंकि उसे कुर्ला से कल्याण पहुंचाना था और समय बहुत ही कम बचा हुआ था जैसे तैसे करके ट्रैफिक को चीरते फारते कल्याण स्टेशन के इलाके में पहुचा अचानक से दिलीप जिस ऑटो में जा रहा था उस ऑटो का डीजल खत्म हो गया तब दिलीप आटो से उतर के पैदल भगाना शुरू कर दी और मन ही मन वह सोच भी रहा था की कोई दूसरी ऑटो या दूसरा लिफ्ट देने वाला कोई मिल जाएगा तो जल्दी से पहुंच जाऊँगा |

किसी तरह भागते दौड़ते जैसे-तैसे करते-करते स्टेशन के बहुत ही नजदीक पहुंचा तो दिलीप को दिखाई दिया की एक आदमी जो की अपनी बाइक से स्लिप होकर रास्ते में गिरा पड़ा था और किसी तरह अपनी बाइक को उठाने की कोशिश कर रहा था शर्ट सब फट गई थी धूल मिट्टी से लिपट गया था हल्का-हल्का सा कई जगहों से खून बह रहा था |

दिलीप से यह देखा नहीं गया और वह अपना काम छोड़कर पहले उस आदमी को उठाने में लग गया दिलीप को उठाता देख उस आदमी ने दिलीप से बोला भाई साहब मैं बहुत लेट हो गया हूं मेरी ट्रेन निकल जाएगी अगर मैं समय पर नहीं पहुंच पाता हूं फिर दिलीप बोलता हैं अच्छा ठीक है तो फिर आपकी ये गाड़ी यही पर साइड में लगा देता हूं और लॉक कर देता हूं और किसी से मै बोल दूंगा वो आपकी गाड़ी को सही जगह पर खड़ी करवा देगा फिलहाल मेरी ट्रेन आने वाली है मुझे वो ट्रेन पकड़ना है|

वह आदमी बोलता है प्लीज मेरी जल्दी-जल्दी मदद करवा दीजिए मुझे स्टेशन पहुंचना है दिलीप अब यह  सोचता हैं अरे ट्रेन तो मेरी भी आने वाली है फिर दिलीप बोलता हैं की, आपकी ये ट्रेन है (ट्रेन का नाम लेकर) क्या? वो आदमी बोलता है हां मेरी भी वही ट्रेन है आप भी वही जा रहे हैं क्या दिलीप बोलता है  हां मेरी भी वही ट्रेन है मैं अपने गांव जा रहा हूं तब वह आदमी बोलता है अरे वाह इससे अच्छी बात क्या हो शक्ति है चलिए साथ में निकलते हैं दोनों साथ में दौड़ना शुरू करते हैं अचानक से पीछे इनको एक ऑटो का आवाज सुनाई देता है वे दोनों ऑटो को हाथ दिखाकर रोकते हैं और ऑटो मे बैठकर  अपने स्टेशन पर पहुंचे और किस्मत से आज ट्रेन 15 मिनट लेट थी अब इनके सामने ही ट्रेन खड़ी थी दोनों ने राहत की सांस ली और वही स्टेशन के बेंच पर बैठ गए इसके बाद दिलीप पानी लेने चला गया और वह आदमी अपने घावों के साफ करने लगा |

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दिलीप जब पानी लेकर आया और देखा की वह आदमी वहा नहीं था तो दिलीप ने कहा अरे वो आदमी तो अभी यही था थोड़ी देर पहले अभी तो यही पर साइड में ही दिख रहा था बेंच के ऊपर बैठा हुआ था अपनी चोट साफ कर रहा था अभी कहां गायब हो गया खैर दिलीप यह सारी चीजे छोड़कर अपने स्लीपर डब्बे में चढ़ जाता हैं उसका बोगी नंबर S3 था और सीट नंबर 61 था दिलीप को जो सीट मिली थी वो लोअर बर्थ की थी वो अपनी सीट पर जाकर बैठ जाता हैं और वो नोटिस करता हैं की इतनी भाग दौड़ में कब शाम के 7:30 बज गए पता ही नहीं चला ट्रेन का वक्त था 7:05 का और 7:30 बज गए |

लेकिन ट्रेन अभी भी खड़ी ही थी खैर जैसा भी हो जर्नी की शुरुआत तो होगी तभी वह नोटिस करता हैं की ट्रेन में इसके अलावा बहुत ही कम लोग हैं एक-एक कंपार्टमेंट को छोड़कर कोई कोई बैठा हुआ है उसने सोचा की ठीक है कोई दिक्कत वाली बात नहीं है सुबह के समय ट्रेन में बैठेंगे यह जर्नी लगभग 35 घंटे की होने वाली थी वह समझा की काफी सारे लोग आयेंगे खैर मुझे क्या करना है मैं अपना आराम करने जाता हूं दिलीप अपने बैग से एक चादर निकाला और उसे अपने सिर पर रख के सोने लगा उसने कांच को नीचे कर दिया था बाहर का भी वातावरण समझ में आ रहा था लेकिन अब अंधेरा हो चला था लगभग रात के 9:30 बजे होगी |

लेट हुई ट्रेन और मिल गया वो अजनबी फिर से – अब टीसी बनकर

अचानक से दिलीप के पैर पर किसी ने हल्का सा टच किया पता चला की वो टीसी है और वह टीसी कोई और नहीं बल्कि यह वही आदमी है जो कुछ समय पहले बाहर उनको एक्सीडेंट स्पॉट पर मिला था जो बेचारा गाड़ी से स्लिप कर गया था जिसके साथ ऑटो मे था वो इनको देखा और बोलता है अरे भाई साहब आप यहां पर मिल गए इससे अच्छा और क्या हो सकता है देखिए आज कुछ भी हो मैं आज रात आपके साथ बैठ के ही सफर करने वाला हूं मैं अपना थोड़ा ड्यूटी कंप्लीट कर लु फिर आता हूं और आपके साथ ही बैठ के जाऊंगा आसपास की सीट भी सुबह के वक्त भरेगी अभी पुरी रात खाली चल रही है तो मै भी यही बाजू वाली सीट में आके आपके साथ बैठूंगा थोड़े गप्पे सप्पे मारेंगे आपका नेचर मुझे बहुत अच्छा लगा भाई साहब बाहर इतना अच्छा भाई चारा जैसा हो गया मतलब ऐसी हालात में हेल्प किये थे ऐसा बोलकर उस टिसी ने दिलीप की टिकट भी चेक नहीं किया और आगे बढ़ गया |

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वह टीसी अपनी ड्यूटी कंप्लीट करके फिर लौट के दिलीप के पास आता है और बोला की हां भाई ये वाली सीट में बैठते हैं अब ये लोग बैठे थे और बातचीत करना शुरू कर दिए तभी दिलीप टाइम नोटिस करता है और बोला अरे इतना टाइम बीत गया मतलब 12:30 कब बज गए पता ही नहीं चला लेकिन दिलीप अपना खाने का डब्बा पैक करके लेकर आया था और वो टीसी भी अपना डब्बा पैक करके लेकर आया था बातचीत भी हुई एक दूसरे का डब्बा भी एक्सचेंज हुआ |

फिर पुरानी बातें भी की आप क्या नौकरी करते हैं कितने साल से करते हैं ये सारी चीज भी हुई लगभग 1:30 बजे थे जब दिलीप ने बोला यार मुझे थोड़ी नींद आ रही है मै सोने जा रहा हु और अब तुम भी सो जाओ इसके बाद दोनों सो जाते है तभी करीब रात के 2:30 बजे के आसपास ट्रेन एक झटका के साथ रुकती है तो दिलीप की हल्की सी नींद मे ही आँख खुल जाती है तो वह बोला अरे क्या हो गया और फिर ट्रेन के बाहर की तरफ देखा और मन मे ही बोला यार यहा तो बिल्कुल घना जंगल है कोई स्ट्रीट लाइट वगैरा भी नहीं है बीच ट्रैक में ही रुक गई है इतने में टीसी की भी हल्की हल्की नींद खुला उसने भी देखा और बोला अरे अभी ट्रेन चलेगा छोड़ो मैं सोने जाता हूं फिर दिलीप भी सोचा की मैं भी सो जाता हूं की तभी इनके साइड वाली कांच पर बाहरी तरफ से नोआक होता है दिलीप बोला अरे इतने घने अंधेरे में किसने नोआक किया उन नोक की आवाज थोड़ी तेज थी यानी की नोक की आवाज के  कारण जो बाजू वाली सीट में टीसी सोए थे वो भी उठ गए और वो भी देखने की कोशिश करने लगे की बाहर तरफ कौन है |

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दोनों ने देखा की बाहर की तरफ एक औरत खड़ी है जिसने काले रंग का कम्बल ओढ़ी हुई है क्योंकि यह मौसम एकदम ठंड वाली थी तो इस वजह से यह समझ आया की वह अपने आप को ठंड से बचाने के लिए ऐसा की हुई है और ये तो जंगली इलाका है यहां पर इसको थोड़ा ज्यादा ठंड लग रही होगी तभी अचानक से टीसी की नजर पड़ती है की हमारी ट्रेन एक नाला के ऊपर बने हुए ब्रिज पर रुक गई है सिग्नल ना मिलने की वजह से और वहीं पर औरत भी दिखाई दी है जो की इस तरह से नोआक करके पैसे मांगने की कोशिश कर रही है इधर दिलीप अपनी नींद को डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था इसलिये दिलीप इन सब चीजों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और नींद में ही पर्स में हाथ डालने लगे और सोचने लगे की ठीक है ₹10 का नोट इसको दे देता हूं इतने में ही वह ₹10 का नोट उस औरत को देने के लिए वो बड़ते है और अपना कांच खोलने ही वाले थे की टीसी जो बाजू में बैठे थे वो जोर से चिल्लाते है निकल निकल निकल जल्दी जा जल्दी जा दिलीप जी आप खिड़की मत खोलिए तब तक वो औरत भी वहां से चली जाती है |

अब दिलीप हैरान हुए की इतने मे एक और ट्रेन में झटका लगा और ट्रेन आगे बढ़ चली दिलीप ने अपने पर्स को अपने जेब में वापस से डाला और टीसी की तरफ बड़े ध्यान से देखें और बोले की मैं तो उसको बस ₹10 ही देने वाला था कितनी ज्यादा गरीब सी दिख रही थी पुराना सा कंबल ओढ़ी हुई थी बाहर काफी ज्यादा ठंड है हो सकता है बेचारी को भूख लगी होगी कुछ हुआ होगा उसके साथ आपने देने क्यों नहीं दिए क्या तकलीफ थी अगर मैं दे देता तों हमारा कुछ घट थोड़ी न जाता वो तो गरीब थी उसके लिए शायद बहुत हेल्प हो जाति इतने में ही टीसी बोलता हैं क्या बोल रहे भाई साहब दिलीप जी आपने शायद बाहर का माहौल नोटिस नहीं किया जहां पर हमारी ट्रेन रुकी हुई थी वहा दूर-दूर तक भी घर दिखाई नहीं दे रहे थे ना ही किसी भी तरह की कोई स्ट्रीट लाइट और खासकर इससे भी बढ़कर ट्रैक में जहां पर हमारी ट्रेन रुकी थी वह जगह एक ब्रिज पर मौजूद थी मतलब बीच ब्रिज में हमारी ट्रेन रुकी थी इसके नीचे लगभग 15 फिट का एक नाला है और ठीक हमारी खिड़की के पास आकर औरत ने नाक की थी तो इससे तो दो ही चीज समझ में आई है या तो वो औरत की हाइट 15 से 20 फिट के आसपास की है या तो फिर वो औरत हवा में उड़ रही थी |

टीसी की चेतावनी और दिलीप का ठहर गया दिल – खिड़की मत खोलो

अब इन दोनों ही कंडीशन में अगर आपको ये चीज नॉर्मल समझ में आ रही थी तो ठीक है मैंने गलत किया उस औरत को भगाकर और माफी चाहता हूँ आपको यह बोलकर की अपनी खिड़की मत खोलो जैसे ये बात दिलीप ने सुना हक्के बक्के रह गए वह भी हड़बड़ा के अपनी खिड़की खोल के बाहर की तरफ मुंह निकाल के देखने की कोशिश की तो पाता है की उनकी ट्रेन जहां पर रुकी थी वही ब्रिज था और नीचे की तरफ तो पूरा नाला बना था जो लगभग 15 फिट के आसपास का रहा होगा तो भाई कैसे उनकी खिड़की के पास एक औरत आ गई कैसे उनकी खिड़की को नोआक कर दी और पैसे मांगने लगी दिलीप के दिमाग के पुर्जे हिल गए क्योंकि दिलीप ने अपने जीवन में अपने इतिहास में जबसे वो पैदा हुवा था तब से कभी भी भगवान या तो फिर शैतान किसी भी तरह के शक्ति के ऊपर बिल्कुल भी विश्वास नहीं करता था |

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लेकिन आज दिलीप ने जो अपनी आंखों से साफ-साफ देखा दिमाग से जो कुछ भी एक्सपीरियंस किया और कानों से जो कुछ भी सुना उसकी वजह से इन्हें यकीन हो गया की इस दुनिया में कुछ तो ऐसा है जो हमारी समझ से बहुत परे है उसके बाद दिलीप ने जब कभी भी अपने गांव के लिए उस ट्रेन से ट्रैवल किया तो वह वाला इलाका आया तो कम्बल ओड के उस इलाके को काटे हैं और वो आज नास्तिक बन चुके हैं तो दोस्तों ये थी दिलीप की कहानी |

दोस्तों अगर आपको यह रियल हॉरर स्टोरी अच्छी लगी हो तो पोस्ट को लाइक जरूर करे तो चलिए फिर मिलता हूं एक नई कहानी के साथ तब तक के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

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नमस्ते दोस्तों मेरा नाम सुधीर कुमार है और मैं एक passionate ब्लॉगर हूँ, जो आपको ऐसी कहानियाँ, अनुभव और जानकारी देने में यकीन रखता हूँ जो किसी के ज़िंदगी में सच में घटा हो। इस ब्लॉग के ज़रिए मैं कोशिश करता हूँ कि आपके दिल और दिमाग दोनों को छू सकूं कभी Horror कहानियों से, तों कभी सच्ची कहानियों से, तों जुड़िए मेरे साथ मेरे ब्लॉग scaryhifear से और पढ़ते रहिये Real Horror story, crime story, और mysterious knowledge एकदम फ्री में |

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