सहारनपुर का भूतिया होटल | Horror Story | Honted Hotel

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मेरा नाम राजन है, मैं मारकेटिंग में एक company में काम करता था  मेरी नौकरी के वजह से मुझे हमेशा यहाँ वहाँ घुमना पड़ता था रात के समय बहुत बार होटलों में रुकना भी पड़ जाता था वैसे तो इन सब पैसो का खर्चा कम्पनी देती थी लेकिन कुछ पैसे बच जाये इसलिए मै छोटी मोटी होटलों में रुक जाया करता था और बिल ज्यादा बनवाता था ताकि थोडा झोल झाल करने से कुछ उपरी कमाई मिल सके पर कभी सोचा नही था की मेरे साथ भी कुछ ऐसी घटनाये हो सकती है |

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मै एक बार सहारनपुर नाम के एक छोटे से शहर के लिये अपनी बाइक से निकला था कुछ कम्पनी का काम था और वहाँ से आर्डर भी लेने थे शाम तक काम हो जाएगा ये सोचकर मैं थोडा आराम से काम कर रहा था लेकिन सारे आर्डर लेते हुवे रात के 8:00 बज चुके थे अब मुझे घर जाना मुश्किल सा लग रहा  था तो सोचा कि यही कहीं सस्ता सा लाज देख लेता हु और कुछ खाने पिने का भी बन्दोबस हो जायेगा, तो मै एक दुकानदार वाले से पूछा अरे भाई साहब यहा कोई लाज है क्या कोई सस्ता हो तो बताओ दुकानदार ने मेरी तरफ देखा और अनदेखा करके बोला यहा कोई लाज नही है और फिर कुछ देर के बाद वह दुकानदार सोच के बोला यहाँ से दो मिल की दुरी पर एक छोटा सा ढाबा है अगर तुम वहाँ खाना खाओगे तो वे लोग तुम्हारे रुकने का भी इन्तेजाम कर देंगे मैं उनको ठीक है बोलकर उस ढाबे की तरफ निकला ही था की तभी उस दुकानदार ने पीछे से आवाज लगाई और वह मेरे पास आके रुका और बोला मेरे पास से उस ढाबे तक जाने में हाइवे पर कही भी रुकना मत सीधे उस ढाबे पर जाकर ही रुकना क्योकि रास्तो में भूतो का डेरा है तुम नये हो इसलिए तुम्हे बता रहा हु अगर कोई रोके फिर भी मत रुकना मैने अपने गर्दन को हा में हिलाते हुये वहा से निकल गया मैंने ऐसी बाते सुनी तो थी पर यकीन आज कल कौन करता है थोड़ी ठंडी हवा चल रही थी जो हेलमेट के अंदर मुझे महसूस हो रहा था क्योकि मुझे ठंडी से जुकाम होता है इसलिए जैकेट पहना था |

शहर से जैसे बाहर निकला घनी झाड़ीया शुरू हुई फिर एक बड़ा सा मोड आया तो मैंने गाड़ी थोड़ा धीमे की और हार्न बजाया तभी एक पेड़ के निचे एक आदमी सोया दिखा मैंने सोचा कोई भिखारी होगा या कोई दारू पीके पड़ा होगा मैं बिना रूके वहाँ से चला गया थोड़ी दूर जाने के बाद एक लाइट की रौशनी दिखी मुझे लगा कि वो ढाबा होगा जो दुकानदार में बताया था पास जाके देखा तो एक छोटा सा घर था जिसके बाहर लिखा था होटल माया वहाँ पर एक दिया जल रहा था और बाहर एक कोने में आग भी जल रही थी लेकिन आस – पास में कोई दिख नही रहा था तो मैंने बाहर से ही एक आवाज लगाई कोई है अन्दर, लेकिन कोई रिप्लाई नही आया तो मैंने एक दो बार और आवाज लगाई तो थोड़ी देर में एक बुढिया अपने हाथ में लालटेन पकडे निकली जो देखने में काफी ज्यादा ही उम्र की लग रही थी और अपने दुसरे हाथ में लाठी पकड़ के चल रही थी देखने में सब कुछ ठीक लगा तो मैं उस बुढिया से पूछ लिया अम्मा, यहां रात में रुकने के लिए कोई कमरा मिल जायेगा क्या जो बनता है वो किराया दूंगा मैंने सोचा कि ये क्या किराया लेंगी सौ पच्चास देके निकल जाऊँगा और सुबह 500 रूपये  का बिल बना के आफिस में दे दूगा उपर का अपना फाइदा ही होगा, वह बुढिया बोली हाँ अगर खाना चाहिए तो वो भी मिलेगा मैं साथ में कुछ बिसकिट और चिप्स के पैकेट रक्खा था ये सब मैं हमेशा अपने साथ में रखता था फिर मै अपने मन में सोचा की इस बुढिया को रात में दिखाई देता होगा भी की नही पता नही खाना बनाने में कितना टाइम लगे क्या पता फिर मै बोला नही अम्मा मै शहर से निकला तो वहा से खा के आया था आप बस कमरा दिखा दे सुबह जल्दी  निकलना भी है फिर वह बूढी औरत मुझे  इसारे से चलने को बोली मैं उसके पीछे चल दिया घर अंदर से काफ़ी साप सुथरा था भीतर जाते ही दाहीनी तरफ दो कम्रे थे एक कमरे में मुझे छोड़कर वो चली गयी  मैं भी थका हुआ था तो थोड़े बिसकिट खा लिये और साथ में लाया पानी पी के वहा रक्खी चारपाई पर ही लेट गया चारपाई थोडा छोटी थी तो मेरे पैर थोडा बाहर लटक रहे थे तो मैंने अपने पैरो को मोड के करवट बदल के सो गया क्योकि मै बहुत थका हुवा था तो जल्दी से नींद भी आ गयी |

उसके बाद जब मेरी आख खुली तो मैंने अपना मोबाइल उठाया और समय देखा तो उस समय 12:00 बच चुके थे तभी मुझे कुछ कुतरने की आवाज आई तो मैंने जल्दी से मोबाइल की लाइट जलाई और देखा तो चूहा था तो मैंने उसे भगाया और फिर से सोने की कोशिश करने लगा और तभी मुझे बाहर से किसी के रोने की आवाज आई साथ में जैसे कुछ टूटने की भी मै थोडा चौक गया और तुरन्त मोबाइल लेकर दरवाजे के पास तक गया आवाज बाहर से आ रही थी तो मैंने धीरे से बाहर झाकने की कोशिश की पर वहा कुछ दिखाई नही दिया फिर सोचा की बुढिया को आवाज लगाउ  लेकिन वो इतनी रात में कहा जागने वाली है यह सोच के चुप रहा और फिर हिम्मत करके धीरे से दरवाजा खोला डर तो मै भी गया था एक तो अँधेरा था ऊपर से वहा पर विजली नहीं थी रात को अचानक ऐसी आवाजे आएंगी तो डर तो लगता ही है मैंने मोबाइल का टार्च ऊपर करके कमरे से बाहर निकला आवाज मेरे कमरे के ठीक बगल वाले कमरे से आ रही थी तो मैंनें अंदर झाकने की कोशिश की पर कुछ देख नहीं पाया मुझे पहले लगा कि मेरे जैसा कोई मुसाफिर होगा जो रात के लिए रुका होगा और अपनी बीवी से झगडा वगडा किया होगा क्योंकि रोने की आवाज औरत की थी तो मैंने दरवाजा खटखटाया जिसके बाद एक झटके से दरवाजा खुला मेरी धड़कने एकदम से तेज हो गई क्योकि अंदर पुरा अंधेरा था बस कोने में एक हल्का सा दिया जल रहा था और उस दिये की रौशनी में वह बुढिया बैठी थी लेकिन अब वो बुढिया बहुत भयानक दिख रही थी वो मेरी ही तरफ अपनी लाल आँखों से देख रही थी मैंने जैसे ही मोबाईल की टार्च पुरे कमरे में घुमाया मैं चकरा गया क्योकि मैंने देखा की एक आदमी सफ़ेद कपड़े पहन कर वहीं ख़ड़ा था जिसके पुरे कपड़े खुन से रंगे हुवे थे और वो लकड़ी के ठीहे पर कुछ काट रहा था |

वो जो आवाज आ रही थी काटने की वो यही से थे यह वही आदमी था शायद जो मुझे रास्ते में पेड़ के नीचे पड़ा दिखा था वह किसी औरत को काट रहा था और वो यही रोने की आवाज थी जो दर्द की वजह से रो रही थी मेरा दिमाग एकदम से सन्न हो गया मै पशिने से तर बतर हो गया था मै भागना चाहता था लेकिन हिल भी नहीं पा रहा था फिर मुझे चक्कर आ गया और मैं वही गिर गया लेकिन नीचे गिरते ही मै अपने आप को सम्हाल कर खडा हो गया क्योकि मै नीचे खून में गिरा था जिससे की मेरे गिरते ही मेरे उपर चिपचिपे से कीड़े रेगने लगे जो उस बूढी औरत के उपर भी वही कीड़े चढे हुए थे हर तरफ कुछ सड़ने की बदबु आ रही थी बुढिया अचानक से खुखार हो गई और वो हथियार लेकर मेरी तरफ बढ़ने लगी मैं तडप रहा था क्योकि मेरे पैर एक ही जगह जैसे जम से गये थे वो जैसे ही मेरे पास आई तो मैने उस बुढिया के मुह में अपने मोबाइल से दे मारा जिससे हम दोनों ही जमीन पर गिर गये इसके बाद मैंने पूरी ताकत लगाकर अपने आप को खड़ा किया और भगवान का नाम लेके ऐसे भागा जैसे मानो ओलंपिक रेस में हूँ और मैं लगातार चिल्ला भी रहा था बुढिया और वो आदमी भी मेरे पीछे ही दौडते हुवे आ रहे थे अब मैं हाइवे पर आ चुका था वैसे ही जैसे मैंने नग्गे पाव जान बचाने के लिए मैं भागा था |

पता नहीं कहा लेकिन जहाँ रास्ता दिखा वहाँ भागा कुछ देर भागने के बाद मैं थक गया अब और भागना मुष्किल था की तभी थोड़ी दूर पर फिर से एक रौशनी दिखी लेकिन इस बार वो ढाबा था मैं जान हथेली पर लेके उस ढाबे की तरफ भागा जैसे वहाँ पंहुचा जोर से चिल्लाने लगा वहाँ काम करने वाले लोग जल्दी से उठकर मेरे पास आए जिससे मेरी जान बची उन लोगो ने मुझे ढाबे पर लाया और पानी पिलाया तब मेरी जान में जान आई फिर मेरे सारे हकीकत को बताने पर एक आदमी बोला बेटा तेरी तक्दीर में जिन्दगी लिखी थी शायद इसलिए बच गया तू लेकिन यह सालों से चलता आया है की वहाँ जो भी फ़सा कभी वापस नही आया वह होटल सबको नहीं दिखता है क्योकि श्रापित होटल है लेकिन जिसको दिखा है वह वहाँ फ़सता है और उन खुनी पिसाचो का शिकार हो जाता है शायद भगवान तेरे साथ है इसलिए तूझे जिन्दगी मिली है फिर रात को मै वही ढाबो वालो के साथ में रहा और सुबह होते ही उन्ही के साथ मै अपनी बाइक और सामान तलास करने उसी जगह गया जहा रात में मुझे होटल दिखा था मेंरी बाइक और मेरा सारा सामान वही था, लेकिन वो होटल अब वहा नही था वह पूरी  जगह सुनसान था ऐसा लग रहा था कि जैसे कुछ था ही नहीं, वह एक श्रापित होटल था जो मै उन्ही काम करने वालों से सुना, मेरे पहले भी कई लोग फसे थे उस होटल में और कई लोगो की जान ली थी उस होटल ने मैंने भगवान से दुआ मागी और अपनी बाइक लेके वहाँ से घर के लिए निकल गया अपने सिने के अंदर उस सापित होटल की वो खुंखार रात की याद को लिये |

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नमस्ते दोस्तों मेरा नाम सुधीर कुमार है और मैं एक passionate ब्लॉगर हूँ, जो आपको ऐसी कहानियाँ, अनुभव और जानकारी देने में यकीन रखता हूँ जो किसी के ज़िंदगी में सच में घटा हो। इस ब्लॉग के ज़रिए मैं कोशिश करता हूँ कि आपके दिल और दिमाग दोनों को छू सकूं कभी Horror कहानियों से, तों कभी सच्ची कहानियों से, तों जुड़िए मेरे साथ मेरे ब्लॉग scaryhifear से और पढ़ते रहिये Real Horror story, crime story, और mysterious knowledge एकदम फ्री में |

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